prashal
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मेरे ख्याल से सिर्फ महिलाओं का आरक्षण ही पर्याप्त है। केटेगरीवाइज व्यवस्था की कोई आवश्यकता ही नहीं है। आप सोचिए कि यदि बस में भीड़ की वजह से महिलाओं को खड़े होकर सफर करना पड़े तो क्या आप सीट छोड़ने को तैयार नहीं होंगे। उसमें आप केटेगरी तो नहीं देखेंगे कि कौन सी महिला दलित है कौन सवर्ण। आप सिर्फ महिला के नाम पर सीट छोड़ेंगे। इसलिए राजनीतिक पार्टियों के विरोध का मतलब ही नहीं है।
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