prashal
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यह लखनऊ की सरजमीं है। कभी कहा जाता था जिसको न दे मौला उसको दे आसफुद्दौला। आज आसफुद्दौला तो नहीं रहे लेकिन शायद उनकी वसीयत के रूप में एक बेशकीमती माला जरूर देखने को मिली। आसफुद्दौला ने भी बड़ा इमामबाड़ा सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय के लिए बनवाया था। अब इस माला को देखकर यही महसूस हो रहा है कि यह भी महंगाई से मरते प्रदेश में सर्वजन हिताय का काम करेगी। अब हुजूर इसके पीछे माया मोह का चक्कर तो होता ही है, मगर यकीन जरूर है कि वक्त के हालात के अनुसार करोड़ों की यह बेशकीमती माला सर्वजन हिताय में विकास के आकाश में तरक्की परवाज करेगी। अब आगे-आगे होगा क्या, ‘यह पब्लिक है सब जानती है…’
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